बंजर खेतों को आबाद करने का विश्वनाथ जगदीशिला तीर्थाटन समिति ने लिया संकल्प..
उत्तराखंड: श्री विश्वनाथ जगदीशिला तीर्थाटन समिति अब पहाड़ों के बंजर खेतों को आबाद करेगी। समिति के सदस्य ने 25 वर्ष पूर्ण होने पहाड़ों के गांवों में अरसे से बंजर पड़े खेतों को दोबारा से आबाद करने का संकल्प लिया।प्रिंस चौक स्थित सभागार में प्रेसवार्ता को यात्रा संयोजक मंत्री प्रसाद नैथानी संबोधित कर रहे थे। उनका कहना हैं कि समिति अब सामाजिक सरोकारों से जुड़े काम भी करेगी। कहा कि संगठन की ओर से हर साल डोली यात्रा निकाली जाती है। अब समिति सामाजिक सरोकारों से जुड़े काम भी करेगी। इसमें सबसे पहले खेती बाड़ी को बचाने का काम होगा। डोली यात्रा के आयोजन की शुरूआत अपने गांवों से करेंगे। इससे पलायन रुकेगा और खेती से विमुख लोगों को दोबारा रोजगार प्राप्त होगा। इस संबंध में समिति द्वारा सचिव कृषि उत्तराखंड शासन को एक ज्ञापन भी भेजा गया है।
कचहरी रोड स्थित सौरभ होटल में आयोजित पत्रकार वार्ता के दौरान पूर्व मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी ने कहा कि राज्य के पर्वतीय अंचलों में कृषि, पशुपालन व बागवानी लाभकारी व्यवसायों के रूप में विकसित नहीं हो पा रहे हैं। इस कारण स्थानीय युवक व युवतियों में कृषि के प्रति उदासीनता बढ़ी है और पलायन भी। कृषकों की आय बढ़ाने के लिए राज्य और केन्द्र सरकारों द्वारा कई उपाय किये जा रहे हैं लेकिन फिर भी पहाड़ों में खेती लाभप्रद नहीं हो पाई है। इसके मुख्य कारण छोटी और बिखरी जोतें, सिंचाई की सुविधा की कमी, कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण और विपणन की सुविधाओं का न होना, उन्नत कृषि प्रसार सेवा की कमी और पलायन के कारण श्रमशक्ति का अभाव है। कृषि के प्रति युवाओं का आकर्षण बढ़ाने के लिए पहाड़ों में खेती बाड़ी के लिए उपकरणों और इनपुट्स सब्सिडी के अनुरूप श्रम सब्सिडी का प्राविधान करना नितांन आवश्यक है।
एनआईआरडी के पूर्व निदेशक डा. बीपी मैठाणी ने कहा कि उन्होंने अपने पैतृक गांव सेन्दुल (बालगंगा तहसील, टिहरी गढ़वाल) में एक गांव-एक जोत की अवधारणा पर गांव के सभी किसानों की भूमि को सम्मिलित (पूल) कर कृषक उत्पादक समिति के माध्यम से खेती करने का एक अभिनव प्रयोग किया। पिछले दो वर्षों में वहां कृषि कार्य पर लगभग 7,50,000 रुपये व्यय हुए और उत्पादन लगभग 5,00,000 रू मूल्य का हुआ। इस प्रकार सभी प्रसास करने पर भी 2,50,000 रू0 की हानि उठानी पड़ी। इससे यह सिद्ध होता है कि पहाड़ में जोतों को पूल करने या चकबन्दी कर देने मात्र से किसानों की आय नहीं बढ़ाई जा सकती है। खेती फिर भी हानि का व्यवसाय बना रहेगा। उनका कहना हैं कि इन परिस्थितियों में मेरा यह सुझाव है कि कृषि व्यवसाय को लाभकारी बनाने के लिए श्रम सब्सिडी का प्रावधान किया जाना अति आवश्यक है। इसके लिए सरकार को कृषि और ग्रामीण विकास की योजनाओं में कनवरजेन्स करना होगा। अर्थात सरकार को चाहिए कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का जो 60 प्रतिशत व्यय जल व भूमि संरक्षण आदि कार्यों के लिए निर्धारित है उसमें कृषि कार्य (बुआई-कटाई) को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए। यह मेरा नया सुझाव नहीं है। नीति आयोग ने वर्ष 2018 में कृषि और मनरेगा में समन्वय स्थापित करने के लिए मुख्यमंत्रियों को उपसमूह गठित किया था उसने भी अपनी रिपोर्ट में कृषि की पत्पादन लागत को कम करने के इस तरह की व्यवस्था की संस्तुति की है।
मनरेगा में एक जॉब कार्डधारी परिवार को एक वर्ष में 100 दिनों का रोजगार देना प्राविधानित है। इससे कृषि सम्बन्धी कार्यों के लिए प्रति परिवार को खेती करने हेतु 60 प्रतिशत अथवा 12000 वार्षिक श्रम सब्सिडी दी जा सकती है। इसमें प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि को जोड़कर श्रम सबिडी की राशि 18000 रू० हो जायेगी। यह सब्सिडी डॉयरेक्ट पेमेंट ट्रांसफर (डी०पी०टी०) के माध्यम से कृषक परिवार के बैंक खाते में दी जानी चाहिए। इसके लिए यह शर्त भी लगाई जा सकती है कि यह सुविधा उन्हीं लोगों को मिलेगी जो गांव में रहकर खेती कर रहे हैं। इससे कई युवा जो छोटी नौकरियों में काम करते हुए शहरों में कष्टकारी जीवन व्यतीत कर रहे हैं वे अपने गांव जाकर खेती करने का विकल्प चुन सकते हैं। इससे पलायन कम होगा और युवकों का गांव में आगमन बढ़ने से कृषि और कृषि पर आधारित गैर कृषि उद्यमों का विकास होगा। कृषि व्यवसाय लाभदायी होने से गांवों में खुशहाली का माहौल बनेगा जो सुरक्षा की दृष्टि भी अनुकूल होगा। इस संबंध में सचिव कृषि को एक ज्ञापन भी भेजा गया है।