कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर शुरू, दिल्ली से नाभीढांग होते हुए चीन में प्रवेश करेगा पहला दल..
उत्तराखंड: कोविड-19 महामारी के बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा एक बार फिर उत्तराखंड के टनकपुर रूट से बहाल हो गई है। शनिवार को सीएम पुष्कर सिंह धामी ने 45 सदस्यीय प्रथम दल को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इस ऐतिहासिक मौके पर सीएम ने यात्रियों से मुलाकात कर उनका कुशलक्षेम जाना और सफल यात्रा की शुभकामनाएं दीं। सीएम धामी ने कहा कि यह केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि संस्कृति, आस्था और क्षेत्रीय विकास का संगम है। यात्रा की पुनः शुरुआत से प्रदेश में तीर्थाटन और पर्यटन को नया आयाम मिलेगा। इसके साथ ही स्थानीय लोगों की आजीविका, सीमांत क्षेत्रों की कनेक्टिविटी और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को नया आधार प्राप्त होगा। उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार की निरंतर कोशिश रही है कि भारत-चीन सीमा से जुड़े सीमांत क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाओं का विस्तार हो और कैलाश मानसरोवर यात्रा जैसे धार्मिक-सांस्कृतिक मार्ग फिर से सक्रिय हों। इस मौके पर यात्रा आयोजकों, प्रशासनिक अधिकारियों और सीमांत गांवों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में उत्साहपूर्ण माहौल देखने को मिला। यात्रा मार्ग पर सुरक्षा, चिकित्सा और मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है।
बहुप्रतीक्षित कैलाश मानसरोवर यात्रा एक बार फिर टनकपुर रूट से शुरू हो गई है। यात्री दिल्ली से चलकर टनकपुर, धारचूला, गुंजी और नाभीढांग होते हुए चीन की सीमा में प्रवेश करेगा। यह यात्रा वर्षों से श्रद्धालुओं के लिए आस्था और आत्मिक शांति का मार्ग रही है। यात्रा मार्ग की रूपरेखा के अनुसार वापसी में यह दल बूंदी, चोकोड़ी और अल्मोड़ा में विश्राम करता हुआ दिल्ली वापस लौटेगा। इस दौरान यात्रियों को उत्तराखंड के पर्वतीय और सीमावर्ती क्षेत्रों के सौंदर्य और संस्कृति का अनुभव भी मिलेगा। राज्य सरकार ने यात्रा को सफल और सुरक्षित बनाने के लिए विशेष प्रशासनिक और चिकित्सकीय व्यवस्थाएं की हैं। पहली स्वास्थ्य जांच दिल्ली में होगी, ताकि यात्रियों की प्रारंभिक स्थिति का मूल्यांकन किया जा सके। दूसरी स्वास्थ्य जांच पिथौरागढ़ के गुंजी में की जाएगी, जो आईटीबीपी (इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस) की निगरानी में संपन्न होगी। यात्रा मार्ग में आवश्यकतानुसार चिकित्सा दल, संचार सुविधा, आपातकालीन रिस्पॉन्स टीमें, और सुरक्षा बलों की भी तैनाती की गई है। सीएम धामी ने इस यात्रा को “आस्था, संस्कृति और क्षेत्रीय विकास का संगम” बताते हुए कहा कि इसके पुनः शुरू होने से न केवल तीर्थाटन को बल मिलेगा, बल्कि स्थानीय आजीविका और सीमावर्ती क्षेत्रों की अर्थव्यवस्था को भी गति मिलेगी।

