November 17, 2025
उत्तराखंड

UKPSC परीक्षा में 30% महिला आरक्षण पर विवाद, हाईकोर्ट में हरियाणा-यूपी की अभ्यर्थियों ने दी चुनौती..

UKPSC परीक्षा में 30% महिला आरक्षण पर विवाद, हाईकोर्ट में हरियाणा-यूपी की अभ्यर्थियों ने दी चुनौती..

 

उत्तराखंड: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य की मूल निवासी महिलाओं को उत्तराखंड लोक सेवा आयोग (UKPSC) की परीक्षाओं में 30 प्रतिशत आरक्षण देने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई की। मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के अनुरोध पर अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद के लिए निर्धारित की है। राज्य सरकार की ओर से अदालत को अवगत कराया गया कि यह मामला महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण से जुड़ा हुआ है। इस प्रकरण की पैरवी राज्य के महाधिवक्ता द्वारा की जाती है, जो आज सुनवाई के दौरान उपलब्ध नहीं थे। सरकार की ओर से अनुरोध किया गया कि अगली तिथि दो सप्ताह बाद निर्धारित की जाए, ताकि महाधिवक्ता स्वयं इस मामले में विस्तृत पक्ष रख सकें। अदालत ने सरकार के इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद नियत की है। ज्ञात हो कि पूर्व में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा जारी उस शासनादेश पर रोक लगा दी थी, जिसके तहत उत्तराखंड मूल की महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया था। कोर्ट ने तब आदेश दिया था कि याचिकाकर्ताओं को परीक्षा में शामिल होने की अनुमति दी जाए। मामले की अगली सुनवाई में यह तय हो सकता है कि आरक्षण नीति को लेकर सरकार का पक्ष किस हद तक न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप है और क्या इसमें किसी प्रकार के संशोधन या स्थगन की आवश्यकता है।

परीक्षाओं में उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश की महिला अभ्यर्थियों ने इस आरक्षण नीति को चुनौती देते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिकाकर्ताओं ने अपने पक्ष में तर्क दिया है कि उत्तराखंड सरकार द्वारा महिलाओं को जन्मस्थान और स्थायी निवास के आधार पर 30 प्रतिशत आरक्षण देना संविधान के अनुच्छेद 14, 16, 19 और 21 का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि किसी भी राज्य सरकार को नागरिकों के मूल अधिकारों के विरुद्ध इस प्रकार का भेदभावपूर्ण आरक्षण देने का अधिकार नहीं है।

याचिकाकर्ताओं ने वर्ष 2001 और 2006 के शासनादेशों को चुनौती दी है, जिनके तहत राज्य सरकार ने उत्तराखंड मूल की महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया था। उनका कहना है कि इस व्यवस्था के कारण अन्य राज्यों की योग्य महिला अभ्यर्थियों को आयोग की परीक्षाओं से बाहर होना पड़ा है, जिससे समान अवसर के सिद्धांत का हनन हुआ है। इससे पहले हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए राज्य सरकार के शासनादेश पर रोक लगा दी थी और याचिकाकर्ताओं को आयोग की परीक्षा में शामिल होने की अनुमति दी थी। अब इस मामले की अगली सुनवाई राज्य सरकार के अनुरोध पर दो सप्ताह बाद निर्धारित की गई है। मामला न केवल आरक्षण नीति की संवैधानिक वैधता से जुड़ा है, बल्कि यह भी तय करेगा कि राज्य सरकार किस सीमा तक क्षेत्रीय आधार पर आरक्षण प्रदान कर सकती है।

 

याचिकाओं में कहा गया है कि उत्तराखंड राज्य लोक सेवा आयोग की ओर से डिप्टी कलक्टर समेत अन्य पदों के लिए हुई उत्तराखंड सम्मिलित सिविल अधीनस्थ सेवा परीक्षा में उत्तराखंड मूल की महिलाओं को अनारक्षित श्रेणी में 30 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। लोक सेवा आयोग ने 31 विभागों के 224 रिक्तियों के लिए पिछले साल दस अगस्त को विज्ञापन जारी किया था। 26 मई 2022 को प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम आया। परीक्षा में अनारक्षित श्रेणी की दो कट आफ लिस्ट निकाली गई। उत्तराखंड मूल की महिला अभ्यर्थियों की कट ऑफ 79 थी, जबकि याचिकाकर्ता महिलाओं का कहना था कि उनके अंक 79 से अधिक थे, मगर उन्हें आरक्षण के आधार पर परीक्षा से बाहर कर दिया गया। सरकार ने 18 जुलाई 2001 और 24 जुलाई 2006 के शासनादेश के आधार पर उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिया जा रहा है, जो गलत है।

 

 

 

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