सब्बावाला में किसानों को रेशमकीट पालन का प्रशिक्षण, वैज्ञानिक तरीकों से बढ़ेगी उत्पादन क्षमता..
उत्तराखंड: देहरादून के सब्बावाला गांव में “मेरा रेशम मेरा अभिमान (MRMA)” अभियान के अंतर्गत 29 अगस्त 2025 को विशेष प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में 52 किसानों को रेशमकीट पालन की आधुनिक वैज्ञानिक पद्धतियों और व्यावहारिक तकनीकों की जानकारी दी गई। विशेषज्ञों ने किसानों को रेशमकीट के मेजबान पौधों में कीट और बीमारियों की पहचान एवं प्रबंधन के उपाय बताए। साथ ही रेशम उत्पादन को बढ़ाने के लिए जैविक तरीकों और नई तकनीकों के उपयोग पर भी जोर दिया गया। कार्यक्रम के दौरान किसानों को यह भी बताया गया कि यदि वे पारंपरिक तरीकों के साथ वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाएँगे, तो न केवल उनकी आय में वृद्धि होगी, बल्कि स्थानीय स्तर पर रेशम उद्योग को भी एक नई दिशा मिलेगी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वैज्ञानिक डॉ. विक्रम कुमार ने की। इस अवसर पर कुल 52 किसानों ने भाग लिया। प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य किसानों को रेशमकीट पालन हेतु पोषक पौधों की वैज्ञानिक खेती, कीट प्रबंधन और शहतूत संवर्धन की नवीनतम तकनीकों से परिचित कराना था। डॉ. विक्रम कुमार ने अपने संबोधन में किसानों को कहा कि यदि वे पारंपरिक तरीकों के साथ आधुनिक वैज्ञानिक विधियों को अपनाएँगे, तो उत्पादन और आय में उल्लेखनीय बढ़ोतरी संभव है।उन्होंने किसानों को पोषक पौधों की वैज्ञानिक खेती, स्थानीय विकल्पों के सही उपयोग, कीट एवं बीमारियों के प्रबंधन, कीटाणुनाशकों के संतुलित प्रयोग और चाकी पालन की महत्ता पर विस्तार से जानकारी दी। इसके साथ ही उन्होंने समुदाय आधारित प्रयासों की उपयोगिता को भी रेखांकित करते हुए कहा कि सामूहिक रूप से किए गए कार्य किसानों के लिए अधिक लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं। विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि रेशमकीट पालन केवल किसानों की आय बढ़ाने का साधन ही नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार सृजन और आत्मनिर्भरता का भी मजबूत माध्यम बन सकता है। कार्यक्रम में शामिल किसानों ने प्रशिक्षण को बेहद उपयोगी बताते हुए कहा कि इस तरह की पहलें उन्हें नए अवसरों से जोड़ने के साथ-साथ प्रदेश में रेशम उद्योग को नई दिशा देने का काम करेंगी।
मेरा रेशम मेरा अभिमान अभियान के जरिए किसानों को शहतूत की खेती, उपयुक्त किस्मों के चयन, बोआई की विधि, सिंचाई प्रबंधन और रोग नियंत्रण की नवीन तकनीकों की जानकारी दी गई। इससे किसानों में यह विश्वास मजबूत हुआ कि उत्तराखंड में रेशमकीट पालन को पर्यावरण-अनुकूल, सतत और आय बढ़ाने वाली गतिविधि के रूप में विकसित किया जा सकता है। किसानों ने इस पहल का स्वागत करते हुए कहा कि ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रम उनके लिए नई तकनीकों को सीखने और व्यवहार में अपनाने का अवसर प्रदान करते हैं। उनका मानना है कि यदि इस तरह की पहलें नियमित रूप से आयोजित हों, तो प्रदेश में रेशम उद्योग को ग्रामीण रोजगार और आत्मनिर्भरता का बड़ा साधन बनाया जा सकता है।


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