November 17, 2025
उत्तराखंड

वेतन रोकने पर शिक्षकों की नाराज़गी, शासन के तर्क पर उठे सवाल..

वेतन रोकने पर शिक्षकों की नाराज़गी, शासन के तर्क पर उठे सवाल..

 

उत्तराखंड: वेतन न मिलने से नाराज़ K.L. DAV पीजी कॉलेज, रुड़की के शिक्षकों और कर्मचारियों ने एक बार फिर हाईकोर्ट का रुख किया है। वहीं अब एमकेपी पीजी कॉलेज, देहरादून के शिक्षक और कर्मचारी भी न्यायिक लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं। बता दे कि दोनों ही महाविद्यालयों के शिक्षकों और कर्मचारियों को बीते चार महीने से वेतन नहीं मिला है। इससे उनके सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। शासन का तर्क है कि दोनों महाविद्यालयों में प्रबंधन समिति और नियंत्रक नियुक्त नहीं हैं, जिस कारण वेतन का भुगतान रोका गया है। हालांकि यह स्थिति नई नहीं है। एमकेपी कॉलेज में तो वर्ष 2020 से ही प्रबंधन और नियंत्रक नहीं हैं, फिर भी अब तक विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 60D के तहत वेतन भुगतान होता आ रहा था। शिक्षकों का कहना है कि यदि प्रबंधन की अनुपस्थिति का हवाला देकर वेतन रोका गया, तो यह शिक्षा व्यवस्था के लिए खतरनाक उदाहरण बन सकता है। उन्होंने सरकार से तत्काल वेतन जारी करने और स्थायी समाधान की मांग की है।

प्रदेश के दो प्रतिष्ठित महाविद्यालयों K.L. DAV पीजी कॉलेज, रुड़की और एमकेपी पीजी कॉलेज, देहरादून के शिक्षक और कर्मचारी एक बार फिर वेतन संकट से जूझ रहे हैं। बीते चार महीनों से वेतन नहीं मिलने से आक्रोशित शिक्षकों ने एक बार फिर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। यह K.L. DAV कॉलेज के शिक्षकों द्वारा पहली बार कोर्ट जाना नहीं है। वर्ष 2022 में भी इसी तरह का मामला हाईकोर्ट पहुंचा था, जब लंबे समय तक वेतन रोका गया था। तब कोर्ट ने प्रबंधन और नियंत्रक विवाद को सुलझाने के साथ वेतन जारी करने के निर्देश दिए थे। उसी आदेश के आधार पर अब तक वेतन मिल रहा था, लेकिन अब फिर अड़चन खड़ी हो गई है। इधर एमकेपी कॉलेज में नियुक्त नियंत्रक को लेकर नया विवाद सामने आया है। महादेवी कन्या पाठशाला सोसायटी ने नियुक्त नियंत्रक की वैधता को हाईकोर्ट में चुनौती दी है, जिससे कॉलेज का प्रशासनिक तंत्र फिर से अस्थिर हो गया है। शिक्षकों का कहना है कि यह स्थिति अब असहनीय हो गई है। प्रशासनिक खींचतान और कानूनी पेचों के बीच शिक्षकों व कर्मचारियों का भविष्य अधर में लटका हुआ है। उन्होंने शासन से मांग की है कि अस्थायी या वैकल्पिक तंत्र बनाकर वेतन नियमित किया जाए, ताकि बार-बार कोर्ट की शरण में न जाना पड़े।

अशासकीय महाविद्यालयों के शिक्षकों को वेतन न मिलने की समस्या लगातार गंभीर होती जा रही है। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (GRUTA) सहित अन्य शिक्षक संगठनों ने लगातार आंदोलन किया और परीक्षा बहिष्कार तक की चेतावनी दी थी। इस दबाव के बीच 22 मई को शासन की ओर से बजट का शासनादेश जारी किया गया, जिससे अधिकांश कॉलेजों के शिक्षकों को राहत मिली। लेकिन देहरादून स्थित एमकेपी पीजी कॉलेज और रुड़की स्थित केएल डीएवी पीजी कॉलेज के शिक्षकों और कर्मचारियों को अब भी वेतन नहीं मिला है। शिक्षकों का कहना है कि यह खुला भेदभाव है। जब शासनादेश सभी महाविद्यालयों के लिए जारी हुआ, तो इन दो संस्थानों को अपवाद क्यों बनाया गया? यह स्थिति न सिर्फ अन्यायपूर्ण है, बल्कि शिक्षकों के धैर्य की परीक्षा भी है। शासन की ओर से बार-बार प्रबंधन और नियंत्रक की गैर-मौजूदगी का हवाला देकर वेतन रोका जा रहा है, जबकि शिक्षक इसे विश्वविद्यालय अधिनियम और मानवाधिकारों के खिलाफ मानते हैं।

एमकेपी पीजी कॉलेज, देहरादून और केएल डीएवी पीजी कॉलेज, रुड़की के शिक्षकों और कर्मचारियों की चार महीने से वेतन नहीं मिलने की समस्या अब न्यायपालिका की चौखट तक पहुंच गई है। दोनों कॉलेजों के कुल 45 से अधिक शिक्षक और कर्मचारी इस वक्त गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। बताया गया है कि वेतन भुगतान के लिए शासन को 10 से अधिक पत्र भेजे जा चुके हैं, लेकिन उन सभी को अनदेखा किया गया। इसके चलते अब केएल डीएवी कॉलेज के शिक्षक हाईकोर्ट की शरण में जा चुके हैं, जबकि एमकेपी कॉलेज के शिक्षक भी 10 जुलाई को होने वाली सुनवाई के बाद कोर्ट में जाने की तैयारी कर रहे हैं। शिक्षकों का कहना है कि मार्च में फाइनल परीक्षाएं खत्म होने के बाद अब एडमिशन का समय है, लेकिन वेतन न मिलने से मानसिक और आर्थिक तनाव लगातार बढ़ रहा है। कई शिक्षकों के लिए मासिक खर्च चलाना भी कठिन हो गया है। उन्होंने साफ कहा है कि अगर अब भी वेतन नहीं मिला, तो उनके पास भी हाईकोर्ट जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा।

 

 

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